जब अशफाक से जेलर ने पूछा की तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या है तब उस युवा क्रांतिकारी ने कहा कि मेरे देश की थोड़ी सी मिट्टी मेरे कफन में लपेट दिया जाए उक्त बातें हेरीटेज सोसाईटी तथा डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित आजादी के अमृत महोत्सव के 31 वें कार्यक्रम के एकदिवसीय वेबिनार "अशफाक उल्ला खां: क्रांतिकारी राष्ट्रवाद" विषय पर उपस्थित मुख्य वक्ता द्वारा कही गयी।
कार्यक्रम की शुरुआत विश्वविद्यालय के प्रो. शैलेंद्रमणि त्रिपाठी ने किया जो आज के इस बेबिनार के अध्यक्ष भी थे। उनके द्वारा परिचय वक्तव्य, स्वागत एवं विषय प्रवेश सम्बंधित वक्तव्य दिया गया। उन्होंने खुदा बक्श ओरिएंटल लाइब्रेरी के पूर्व निदेशक एवम आज के मुख्य वक्ता डॉ. इम्तियाज अहमद जी का संक्षिप्त परिचय उपस्थित सभी प्रतिभागियों को कराया तथा मुख्य वक्ता, आयोजन समिति के सदस्यों, उपस्थित दोनों संस्थानों के पदाधिकारियों और दर्शकों का स्वागत भी अध्यक्ष द्वारा किया गया। उन्होंने यह भी बताया कि आयोजन श्रृंखला की अध्यक्षा तथा डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. आशा शुक्ला के मार्गदर्शन में विश्वविद्यालय तथा हेरीटेज सोसाईटी के सहयोग से यह श्रृंखला आयोजित की जा रही है।
आजादी के अमृत महोत्सव के आयोजन श्रृंखला के 31वें वेबिनार में मुख्य वक्ता के रूप में खुदा बक्श ओरिएंटल लाइब्रेरी के पूर्व निदेशक एवम आज के मुख्य वक्ता डॉ. इम्तियाज अहमद ने "अशफाक उल्ला खां: क्रांतिकारी राष्ट्रवादी" विषय पर विस्तार से अपनी बातें रखी।इस मौके पर मुख्य अतिथि ने कहा कि अशफाक जाति धर्म से परे एक राष्ट्रभक्त क्रांतिकारी थे।
डॉ. इम्तियाज अहमद ने युवा क्रान्तिकारी का जिक्र करते हुए कहा कि अशफाक जैसे लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की नीव डाली थी। उन्होंने उनकी जीवनी का जिक्र करते हुए कहा कि इनका जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में 1900 को हुआ था। इनका परिवार पठानों का परिवार था। थोड़ी बहुत जमींदारी थी परिवार में सभी लोग पढ़े लिखे थे। लेकिन क्रान्तिकारी अशफाक अपनी अलग राह बनाना चाहते थे और इसमें उनका साथ उनके माता जी ने दिया। वक्ता ने अशफाक उल्ला खां और राम प्रसाद बिस्मिल की दोस्ती का भी ज़िक्र किया।उन्होंने कहा कि एक बार जब शाहजहांपुर में हिंसा हुई तो मुस्लिमों के भीड़ को अशफाक ने रोका और अपने मित्र रामप्रसाद बिस्मिल के आर्य समाज के मंदिर पर कोई हिंसा नहीं होने दी।
मुख्य वक्ता ने कहा कि अशफाक गांधी जी के असहयोग आंदोलन के समय क्रांति में आए लेकिन बाद में उन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन को ज्वाइन कर लिया, क्योंकि वे क्रांति या इंकलाब के रास्ते ही देश को आजाद कराना चाहते थे। काकोरी ट्रेन लूट का ज़िक्र करते हुए इम्तियाज अहमद ने कहा कि दुख की बात ये है कि देश में आज भी इस हादसे को लूट का नाम दिया जाता है जो लूट नहीं था ये सिर्फ एक एक्शन था जिसका उद्देशय आंदोलन को सकारात्मक गति प्रदान करना था। इस घटना के बाद अशफाक ने आंदोलन को और आगे बढ़ाया।अंग्रेज सरकार ने उनको काकोरी कांड में आरोपी बनाया।मुख्य वक्ता ने एक वाक्या का ज़िक्र करते हुए कहा कि जब उनके एक दोस्त ने कहा की तुम लाहौर आ जाओ मैं तुम्हें शरहद पार करा दूंगा तब अशफाक ने उत्तर दिया कि कम से कम एक मुसलमान को तो अपनी मातृभमि के लिए फांसी चढ़ने दो, क्योंकि काकोरी केश में जितने लोग गिरफ्तार हुए थे उसमे अशफाक ही एक मुसलमान थे।उन्होंने अशफाक के किताब का जिक्र करते हुए कहा की अशफाक ने अपने किताब में आजादी के मायने समझाए। उन्होंने लिखा कि वे लोग बहुत अभागा हैं जो गुलाम देश में जन्म लिया और आजादी की लड़ाई में बिना भाग लिए मर गया। वक्ता ने कहा कि अशफाक इस देश को जाति धर्म और संप्रदाय से ऊपर मानते थे।उन्होंने कहा की अशफाक का जीवन ही एक संदेश है।अशफाक का जीवन सामाजिक समरसता, एकता और भाईचारे का है।
आजादी के अमृत महोत्सव के आयोजन श्रृंखला के समन्वयक तथा हेरीटेज सोसाईटी के महानिदेशक डॉ. अनंताशुतोष द्विवेदी द्वारा धन्यवाद ज्ञापन किया गया। अपने वक्तव्य में डॉ. द्विवेदी मुख्य वक्ता के व्याख्यान की प्रशंसा की।
डॉ. द्विवेदी काकोरी कांड की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि जिस तरीके से आज भी देश में काकोरी कांड को लूट की संज्ञा दी जाती है वो पूरी तरीके से बेबुनियाद है, इसको तुरंत प्रभाव से समाप्त कर देना चाहिए। काकोरी की घटना कोई लूट की घटना नहीं थी बल्कि यह सिर्फ भारत को अंग्रेजी के चंगुल से मुक्त करने के लिए विद्रोह का तरीका था।
डॉ. द्विवेदी ने बताया कि आजादी का अमृत महोत्सव के आयोजनों का उचित न्याय इस प्रकार के बदलाव से ही सम्भव हो सकता है। साथ ही उन्होंने कहा कि आज के विद्वत व्याख्यान में कई रोचक एवं ज्ञानवर्धक तथ्य को हमलोगों के समक्ष रखा है ।
सत्र का संचालन श्रृंखला के अकादमिक समन्वयक डॉ. अजय दूबे द्वारा किया गया।आयोजन में प्रो. नीरू मिश्रा, प्रो. सम्पा चौबे का अकादमिक सहयोग तथा सानन्त टीम के सदस्यों का तकनीकी सहयोग प्राप्त हुआ। इस अवसर पर कई विश्वविद्यालयों के फैकल्टी, शोधार्थी, विद्यार्थी एवं विरासत प्रेमी नई भाग लिया। कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र भी प्रदान किया गया।
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